एक कहानी

इक रात अचानक आँखों ने एक नन्हा आंसू उगल दिया
आंसू था द्रवित भावना का दिल से बहता सैलाब नया
मन था अवाक, ना समझा था वो दर्द छुपा जो मन में था
आँखों ने जब मन को समझा तो द्वार दर्द का खोल दिया

पूछा फिर मन ने हौले से बोलो तुम आज क्यों बहते हो ?
क्या कारण सोच के तुम यूँ ही चुपके से बाहर आये हो?
जीवन ने मोड़ लिए लाखों पर अब तो सब कुछ स्थिर है?
क्यों बह कर याद दिलाते हो जीवन में सब कुछ नश्वर है?

आंसू बोला मन, मीत मेरे तुम हो जन्मो जन्मान्तर से
मै बहता हूँ टूटे हो जब जब तुम जीवन की ठोकर से
पर साल गए तुम शांत रहे, जाने किस मोड़ पे खोये हो
तुम भूल गए तुम जीवित हो, कटु विलग खिन्न क्यों सोये हो

जागो मन, मीत मेरे जागो फिर जीवन तुम्हे बुलाता है
खोलो अपनी गिरहें खोलो फिर राग प्रेम के तुम बोलो
बहने दो मुझको दुःख सुख में, न कैद करो मुझको खुद में
मन की भाषा कहलाता हूँ , मुझ में बोलो मुझ से बोलो…

मन की गहरी तंद्रा टूटी जब सच से सारोकार हुआ
आंसू कि बूँदें जब बरसी नव जीवन का संचार हुआ
सावन आया फिर जीवन में सूखे बंजर से इस मन में
आशा कि नदिया बह निकली सोये सपनो के उपवन से

चट्टान बना मन पिघल गया आंसू की शीतल गर्मी से
बह गए सतत कुंठित विचार डूबे मन कि नव नरमी में
आंसू सूखे जब कुछ पल में , ना रात बची ना बात बची
नव विहान की इस बेला में बस होंठो पे मुस्कान बची ….

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